परिचय
'आधे-अधूरे' मोहन राकेश द्वारा लिखा गया प्रसिद्ध नाटक है, जो एक मध्यमवर्गीय
परिवार की टूटती हुई
संरचना और रिश्तों की
जटिलता को दर्शाता है।
यह नाटक न केवल पारिवारिक
विघटन को उजागर करता
है, बल्कि समाज में मौजूद आर्थिक, सामाजिक और मानसिक तनावों
को भी दर्शाता है।
कहानी का सारांश: यह नाटक सावित्री
नामक महिला के इर्द-गिर्द
घूमता है, जो अपने पति
महेंद्रनाथ और तीन बच्चों
के साथ एक तनावपूर्ण जीवन
व्यतीत कर रही है।
परिवार के सदस्यों के
बीच संवादहीनता, आर्थिक असुरक्षा और भावनात्मक तनाव
के कारण संबंधों में दरारें पड़ जाती हैं। सावित्री एक ऐसे जीवन
की तलाश में है, जहां उसे आत्मसम्मान और स्वतंत्रता मिल
सके, लेकिन हर कदम पर
वह असंतोष और निराशा का
सामना करती है।
मुख्य पात्र:
·
सावित्री:
परिवार की मुखिया, जो
आत्मनिर्भरता और सम्मान की
तलाश में संघर्ष करती है
·
महेंद्रनाथ:
सावित्री का पति, जो
असफल और हताश व्यक्ति
है
·
अशोक:
बेटा, जो बेरोजगारी की
समस्या से जूझ रहा
है
·
बिन्नी:
बेटी, जो अपने पति
के साथ असंतुष्ट जीवन बिता रही है
·
कंचन:
छोटी बेटी, जो पारिवारिक तनावों
से प्रभावित है
प्रमुख विषय:
·
पारिवारिक
विघटन
·
अस्तित्ववादी
द्वंद्व
·
स्त्री
की स्वतंत्रता की खोज
·
आर्थिक
असुरक्षा
·
संवादहीनता
शैली और भाषा: मोहन राकेश की भाषा सहज,
प्रवाहमय और संवादात्मक है।
उन्होंने पात्रों के माध्यम से
समाज की वास्तविकताओं को
सजीव रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी संवाद शैली पात्रों के आंतरिक द्वंद्व
और मानसिक स्थिति को प्रभावशाली ढंग
से उजागर करती है।
पाठकों के लिए संदेश: यदि आप आधुनिक समाज
में परिवार के बदलते मूल्यों,
रिश्तों की जटिलता और
व्यक्ति के अस्तित्ववादी संघर्ष
को गहराई से समझना चाहते
हैं, तो 'आधे-अधूरे' अवश्य पढ़ें। यह नाटक आपको
समाज के छिपे हुए
पहलुओं को महसूस करने
का अवसर देता है।
उपसंहार:
'आधे-अधूरे' हिंदी साहित्य में यथार्थवादी नाटकों की एक महत्वपूर्ण
कृति है। यह नाटक पारिवारिक
जीवन के विघटन और
व्यक्ति की स्वतंत्रता की
खोज को अत्यंत संवेदनशीलता
से दर्शाता है।
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