परिचय
1935 में प्रकाशित अछूत (Untouchable) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण उपन्यास है। यह पुस्तक जाति प्रथा के कठोर यथार्थ और निचले वर्ग के लोगों की पीड़ा को दर्शाती है। लेखक ने इसमें दलित समुदाय के सामाजिक उत्पीड़न, असमानता और उनके अधिकारों की खोज को सजीव रूप से प्रस्तुत किया है।
मुख्य पात्र:
- बक्खा: कहानी का नायक, एक युवा मेहतर जो सम्मान और बेहतर जीवन की इच्छा रखता है।
- लाखा: बाखा के पिता, जो पारंपरिक सफाई कर्मचारी हैं।
- राखा: बाखा का छोटा भाई, जो पिता के पेशे को अपनाता है।
- सोहिनी: बाखा की बहन, जो समाज के अत्याचारों का शिकार होती है।
- कर्नल हचिन्सन: एक ईसाई मिशनरी, जो बाखा को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है।
- महात्मा गांधी: दलित उत्थान के समर्थक, जिनका भाषण बाखा को प्रभावित करता है।
सारांश: कहानी बाखा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो जाति व्यवस्था के कारण समाज में अपमान और बहिष्कार का सामना करता है। बाखा के मन में ब्रिटिश जीवनशैली के प्रति आकर्षण है और वह एक सम्मानजनक जीवन का सपना देखता है।
कहानी में महत्वपूर्ण मोड़ तब आता है जब उसकी बहन सोहिनी को एक ब्राह्मण पुजारी द्वारा उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यह घटना जातीय भेदभाव और महिलाओं की स्थिति को उजागर करती है।
बाखा की मुलाकात कर्नल हचिन्सन से होती है, जो उसे ईसाई धर्म अपनाने की सलाह देते हैं। लेकिन बाखा अपनी परंपराओं और धर्म के प्रति दुविधा में रहता है। कहानी का सबसे प्रेरणादायक हिस्सा तब आता है जब बाखा महात्मा गांधी का भाषण सुनता है, जो दलितों के अधिकारों की वकालत करते हैं और जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हैं।
मुख्य विषय:
- जाति भेदभाव
- सामाजिक अन्याय
- आत्मसम्मान की खोज
- सामाजिक सुधार
- धार्मिक असमानता
शैली: मुल्कराज आनंद की भाषा सरल, सजीव और प्रभावशाली है। उन्होंने पात्रों के माध्यम से दलित समुदाय के संघर्ष और पीड़ा को गहराई से व्यक्त किया है।
पाठकों के लिए संदेश: अछूत एक ऐसा उपन्यास है जो समाज में व्याप्त असमानता को उजागर करता है और समानता और न्याय की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यदि आप जाति प्रथा और दलित समाज की वास्तविक स्थिति को समझना चाहते हैं, तो यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
उपसंहार: अछूत (Untouchable)एक कालजयी कृति है जो जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती है। इसका संदेश आज भी प्रासंगिक है और समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा देता है।
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